भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरस बाद / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घाटियों में विगत की
छोड़ दिए
सब अॅंधेरे,
तभी आए
बरस बाद
मुस्कान ले सवेरे।
नए बरस के दरस
           के लिए
                    घाटियॉं कसमसाई।
चहक उठे पखेरू
हर तरु की
डाल– डाल पर ;
सूरज की बिन्दिया
खिल गई
धरा –भाल पर।
भोर की शिशु–किरन
ले उजास
धरा पर उतर आई़।
-0-
09 दिसम्बर 2006