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बराए तिश्ना-लब पानी नहीं है / ख़ालिद महमूद

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बराए तिश्ना-लब पानी नहीं है
समंदर का कोई सानी हैं

हमारा घर भी सहरा हो गया है
मगर ‘ग़ालिब’ सी वीरानी नहीं है

रगों में ख़ून शोख़ी कर रहा है
सितारे सी वो पेशानी नहीं है

मैं अपने घर के अंदर चैन से हूँ
किसी शय की फ़रावानी नहीं है

निज़ाम-ए-जिस्म जम्हूरी है ‘ख़ालिद’
किसी जज़्बे की सुल्तानी नहीं है