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बरुनी बघँबर मैँ गूदरी पलक दोऊ / देव
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बरुनी बघँबर मैँ गूदरी पलक दोऊ ,
कोए राते बसन भगोहेँ भेष रखियाँ ।
बूड़ी जल ही मैँ दिन जामिनि हूँ जागैँ भौंहैँ ।
धूम सिर छायो बिरहानल बिलखियाँ ।
अँसुआँ फटिक माल लाल डोरे सेल्ही पैन्हि ,
भई हैँ अकेली तजि चेली सँग सखियाँ ।
दीजिये दरस देव कीजिये सँजोगिनि ये ,
जोगिनि ह्वै बैठी हैँ बियोगिनि की अँखियाँ
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।