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बर्फ़ की तहों के नीचे / अज्ञेय

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 बर्फ़ की तहों के बहुत नीचे से सुना मैं ने
उस ने कहा : यहीं गहरे में
अदृश्य गरमाई है
तभी सभी कुछ पिघलता जाता है
देखो न, यह मैं बहा!
मेरी भी, मेरी भी शिलित अस्ति के भीतर कहीं
तुम ने मुझे लगातार पिघलाया है।
पर यह जो गलना है
तपे धातु का उबलना है
मैं ने इसे झुलसते हुए सहा
पर कब, कहाँ कहा!

हाइडेलबर्ग, 30 जनवरी, 1976