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बर्फ़ तुम पिघलो / तेज राम शर्मा
Kavita Kosh से
बादल का घिरना
जीवन में काले बादलों के घिरने जैसा ही नहीं है
उनका बर्फ़ बन कर गिरना भी है
बच्चों का गिरती बर्फ़ में उत्सव मनाना
और हँसी का लौट आना भी है
बर्फ, तुम गिरो
रात भर बर्फ का परत-दर-परत जमना
अंदर ही अंदर कुछ जम जाना
और जड़ हो जाना ही नहीं
सुबह होते ही
ताज़ा बर्फ पर
बच्चों का नंगे पाँव
उछल-कूद मचाना भी है
बर्फ, तुम जमो
किरण का कोमल स्पर्श
और स्लेट की छत से बर्फ़ का
टप-टप पिघल जाना
सब कुछ खो जाना ही नहीं
सूनी आँखों में
आँसुओं का लौट आना भी है
बर्फ, तुम पिघलो।