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बर्फ़ में भी हमारा घर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
बहुत पहले
रोशनी का मंत्र हमने भी जपा था
बहुत पहले
इस अँधेरे नए युग में
मंत्र वह हो गया उलटा
और किरणें भी हमारे सूर्य की
हो गईं कुलटा
बहुत पहले
बर्फ़-युग में भी हमारा घर तपा था
बहुत पहले
दिये की बाती हमारी
थी अलौकिक
खो गई वह
हवन की जलती अगिन थी
हो गई है सुरमई वह
बहुत पहले
हाँ, किसी अख़बार में भी यह छपा था
बहुत पहले
वक़्त के जादू-भरे
इस झिटपुटे में रंग खोए
जग गए वे दैत्य
जो थे रोशनी में रहे सोए
बहुत पहले
आँख का भी रोशनी से बहनपा था
बहुत पहले