भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बर्फ़ में भी हमारा घर / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत पहले
रोशनी का मंत्र हमने भी जपा था
                                 बहुत पहले

इस अँधेरे नए युग में
मंत्र वह हो गया उलटा
और किरणें भी हमारे सूर्य की
हो गईं कुलटा

बहुत पहले
बर्फ़-युग में भी हमारा घर तपा था
                                बहुत पहले

दिये की बाती हमारी
थी अलौकिक
खो गई वह
हवन की जलती अगिन थी
हो गई है सुरमई वह

बहुत पहले
हाँ, किसी अख़बार में भी यह छपा था
                               बहुत पहले

वक़्त के जादू-भरे
इस झिटपुटे में रंग खोए
जग गए वे दैत्य
जो थे रोशनी में रहे सोए

बहुत पहले
आँख का भी रोशनी से बहनपा था
                             बहुत पहले