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बर्फ़ से ढक गया है पहाड़ी नगर / बल्ली सिंह चीमा

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बर्फ़ से ढक गया है पहाड़ी नगर ।
चाँदी-चाँदी हुए हैं ये पत्थर के घर ।

ख़ूबसूरत नज़ारे बुलाते हैं आ,
मैं परेशान हूँ पहले देखूँ किधर ।

तेरे दाँतों-सी सुन्दर सफ़ेदी लिए,
रास्ते मुस्कराए मुझे देखकर ।

तेरे चेहरे-से सुन्दर मकानों में ही,
काश होता सनम एक अपना भी घर ।

चूमकर पैर पगडंडियाँ हँस पड़ीं,
तू गिरेगा नहीं देख इतना न डर ।

ठण्डी-ठण्डी हवाएँ गले से मिलीं,
और कहने लगीं हो सुहाना सफ़र ।

चीड़ के पेड़ कुहरे में उड़ते लगें,
टहनियाँ हैं या उड़ते परिन्दों के पर ।

दिल है मेरा भी तेरी तरह फूल-सा,
इस पे होने लगा मौसमों का असर ।

मुस्कराते हुए ये हँसी वादियाँ,
कह रही हैं हमें देखिएगा इधर ।

बर्फ़ की सीढ़ियाँ, बर्फ़ की चोटियाँ,
हैं बुलाती हमें आइएगा इधर ।

तेरी जुल्फ़ों-सी काली नहीं रात ये,
है बिछी चाँदनी देखता हूँ जिधर ।

काली नज़रों से, यारो ! बचाओ इन्हें,
इन पहाड़ों पे जन्नत है आती नज़र ।

ज़िन्दगी ख़ूबसूरत पहाड़न लगे,
साथ तेरा हो और हो पहाड़ी सफ़र ।

हम मिले अर्थ जीवन ने पाए नए,
देख 'बल्ली' का चेहरा गया निखर ।