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बर्फीली धुंध में काला कव्वा / अलेक्सान्दर ब्लोक / वरयाम सिंह
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बर्फ़ीली धुन्ध में काला कव्वा
साँवले कन्धों पर काली मखमल
एक थकी कोमल आवाज़
दक्षिण की रातों के सुना रही है गीत ।
मौज-मस्ती है तनावमुक्त हृदय में
समुद्र से जैसे कोई संकेत मिला हो
अथाह गह्वर के ऊपर से उड़ता
अनन्त की ओर चल दिया घोड़ा एक ।
बर्फ़ीली हवा, तुम्हारी साँस,
मदोन्मत्त मेरे होठ...
वलेनतीना, वह तारा, वह सपना !
कितना अच्छा गाती है तुम्हारी कोयल ।
डरावनी यह दुनिया तंग पड़ रही है तुम्हारे हृदय के लिए,
तुम्हारे चुम्बनों का सन्निपात है उसमें,
जिप्सी गीतों का काला अन्धकार है
और है पुच्छलतारों की तेज़ उड़ान ।