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बर्फीले टापू पर / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
जादू की नगरी में
हलचल है फिर
पत्थर के चेहरों पर
टँगी-हुई नकली मुसकान खिली
बँधे हुए पाँवों में
बरसों की यात्रा अनजान मिली
पोखर का टिका हुआ जल
चंचल है फिर
मरा-हुआ
या कि शहर ज़िंदा है
करते हैं लोग ज़िरह
शाही मेहमान रोज़ मना रहे
सपनों की सालगिरह
उम्र हुई / बर्फीले टापू पर
बादल है फिर
पेट-पीठ
दोनों के किस्से
फिर से मशहूर हुए
फूलों के गुलदस्ते
चंदन के बाग़ में मजूर हुए
टूटे दरवाजे पर घर के
साँकल है फिर