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बर्फ की देह जल रही है कहीं / जहीर कुरैशी
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बर्फ की देह जल रही है कहीं
धीरे-धीरे पिघल रही है कहीं
यूँ तो जीवन की भिन्न मुश्किल है
किन्तु कितनी सरल रही है कहीं
आज की राजनीति की रंभा
दिल कहीं,दल बदल रही है कहीं
एक सोलह बरस की लड़की में
पूरी औरत मचल रही है कहीं
गाँव से इस शहर में आते ही
ये सड़क तेज़ चल रही है कहीं
तेरी बातों में आस्था की चमक
मेरी मुश्किल का हल रही है कहीं
छोड़ कर अम्न के कबूतर को
ये सदी हाथ मल रही है कहीं