भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बर्फ के पर्वत पिघलते जाएँगे / विजय वाते
Kavita Kosh से
बर्फ के परवत पिघलते जाएँगे|
बात कीजे हल निकलते जाएँगे|
धुप के लिक्खे को जल्दी बांचिये,
बारिशों मी हर्फ़ घुलते जाएँगे|
अवसरों में मुश्किलें मत देखिये,
हाथ से अवसर निकलते जाएँगे|
मुश्किलों में देखिए अवसर नए,
रास्ते ख़ुद आप खुलते जाएँगे|
सब हवा पर कान देते है, "विजय",
हम हवा पर आँख रखते जाएँगे|