भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बर्फ गिरती रहे आग जलती रहे / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
बर्फ गिरती रहे आग जलती रहे
आग जलती रहे रात ढलती रहे
रात भर हम यूँ रक्स करते रहें
नींद तन्हा खड़ी हाथ मलती रही
बर्फ़ के हाथ प्यानों बजाते रहें
जाम चलते रहें मैं उछलती रहे।