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बर्लिन की दीवार / 15 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
पत्थर निर्जीव नहीं है
ये विलाप भी करते हैं।
यदि ऐसा न होता
पत्थर मानव की
जीवन-यात्रा का सच्चा साथी
न साबित होता।
क्योंकि अंतिम समय में
न ही उसके भाई-बहन
न ही सगे संबंधी
और न ही
कहे जाने वाले जीवन-साथी
उसका साथ देते हैं।
साथ देते हैं ये पत्थर
जो उसकी
कब्र पर सजते हैं
या जिन पत्थरों पर रखकर
उसका अंतिम संस्कार
किया जाता है, शायद
यात्रा को पूर्ण विराम
ये पत्थर ही देते हैं।
तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
कर रहे हैं, इन्कार
अपने आप में
इस दायित्व को निभाने के लिये
क्योंकि उनमें शक्ति नहीं है
कि वो सहन कर पायेंगे
विलाप
मानवता के दाह संस्कार का।