Last modified on 18 जून 2022, at 12:28

बर्लिन की दीवार / 39 / हरबिन्दर सिंह गिल

बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते
टुकड़े पत्थरों के
आज के लिये
सबसे बड़ी
चुनौती है।

कल ने तो
अपनी बुराइयाँ
और अच्छाइयाँ
दोनों को ही
आज की गोद में
डाल
अपने को मुक्त
कर लिया है।

बुराई थी
वो सब कारण
जिसने जन्म दिया
इस दीवार को
और अच्छाई
उस ताकत की
जिसने
ढ़ाह दिया इस
दीवार को।

अगर हम कहें
यह
प्रजातंत्र की
कम्युनिसम पर जीत है
तो प्रजातंत्र के लिये
आने वाला हर कल
एक चुनौती भरा होगा
क्योंकि
उसके विरोध में
कोई नहीं है।
और उसके
अपने कर्मों का
मूल्यांकन और कोई नहीं
समय करेगा
और समय किसी को
माफ नहीं करता।

ये ढ़हती दीवार के
पत्थरों के टुकड़े
जो आज
किसी हीरे से
कम नहीं हैं
कहीं अपनी
चमक नहीं खों दें
मानव के लिये
एक चुनौती बनकर
रह गये हैं।