भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बर्लिन की दीवार / 5 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पत्थर निर्जीव नहीं हैं
ये जन्मदाता भी हैं
आजकल के आणविक हथियारों के।

आदिकाल से ही मानव
इन नुकीले पत्थरों से
शिकार करता था,
मानव और जानवर दोनों का।
कुछ का अपनी सुरक्षा के लिये
और कुछ का भूख मिटाने के लिये।

परंतु मानव का मानव हमेशा ही
आदिकाल से आजतक शिकार करता आ रहा है।
सिर्फ अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये।

और पत्थरों की डाली इस परंपरा ने ही
जन्म दिया है युगान्तरों से होते आ रहे
हर प्रकार के विकसित हथियारों को।

हथियार जो इतने घातक हो गये हैं
कि मानव के शिकार से उसकी भव नहीं मिटती
और अब निगाह है उसकी मानवता पर
ताकि मानव को बता सके
कि वह मुझे निर्जीव समझ
अपने आप में कितनी भूल कर रहा है।

तभी तो बर्लिन-दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
कह रहे हैं कि नष्ट कर दो
इन आणविक हथियारों के भंडारों को भी
जैसे ढाह कर नष्ट किया जा रहा है मुझे
नहीं तो डर लगता है
कहीं हथियारों के जन्म की कहानी
दोहरानी न पड़ जाए मुझे।