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बलवानों की जननी / सुवर्णसिंह वर्मा ‘आनंद’
Kavita Kosh से
रचनाकाल: सन 1930
हम बलवानों की जननी हैं, तुमको बलवान बना देंगी,
हम अबला हैं या सबला हैं, तुमको यह ध्यान दिला देंगी।
हम देश-भक्ति पर मरती हैं, न्यौछावर तन-मन करती हैं,
हम भारत के दुख हरती हैं, होकर कुर्बान दिखा देंगी,
हम मद्य प्रचार मिटा देंगी, परदेशी वस्त्र हटा देंगी,
हम अपना शीश कटा देंगी, पर तुम्हें सुराज दिला देंगी।
हम दुर्गा, चंडी, काली हैं, आज़ादी की मतवाली हैं,
हम नागिन डसने वाली हैं, दुश्मन का दिल दहला देंगी।
हम शांतचित्त हैं, ज्ञानी हं, हम ही झांसी की रानी हैं,
यह अटल प्रतिज्ञा ठानी है, भारत स्वाधीन करा देंगी।