Last modified on 28 जनवरी 2025, at 22:42

बला से लाठियाँ टूटीं मगर कुनबा नहीं टूटा / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

बला से लाठियाँ टूटीं मगर कुनबा नहीं टूटा।
मुसलसल बारिशों से भी ये घर कच्चा नहीं टूटा।

मिला लालच हो मसनद का या फिर धमकी भरे ख़त हों,
हमेशा मान टूटे हैं कोई राणा नहीं टूटा।

नये हालात के मद्देनजर पैगाम आया है,
फकत बदली हैं कुछ शर्तें मगर सौदा नहीं टूटा।

जो ठहरे अम्न के दरिया में कंकड़ डाल कर खु़श हैं,
उन्हंे कह दो कि टूटी नींद है सपना नहीं टूटा।

नजर में हैं हमारी आग, नफ़रत , खून के मंजर,
गनीमत है हमारे सब्र का प्याला नहीं टूटा।

बराबर हो रही घर तोड़ने की कोशिशें फिर भी,
अभी तक एक भी जनतन्त्र का पाया नहीं टूटा।

कई मनकों को उलझाने की साज़िश की गयी लेकिन,
अभी तक मुल्क में ‘विश्वास’ का धागा नहीं टूटा।