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बलिपंथी / महेन्द्र भटनागर

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हम कब पथ में रुकते हैं ?

परिणामों की परवाह न, हम तो कर्मों में तत्पर ;
पल-पल का उपयोग यहाँ, खोने पाये कब अवसर ?
आज़ादी-आन्दोलन में सिर देने वाले सैनिक
अत्याचारों से डर कर कब दुर्बल बन झुकते हैं ?

जब आँधी आती है तब जर्जरता मिट जाती है,
विप्लव होता जब जग में, शांति तभी ही आती है,
ज़ंजीरों को तोड़े बिन हम चैन तनिक ना लेंगे —
निज उद्देश्यों के हित, जीवन में सब सह सकते हैं !
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