भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बलिबेदी पर चढ़ता वसंत / एस. मनोज
Kavita Kosh से
विकास के अंधे दौर में
घटती जा रही है प्राकृतिकता
और बढ़ती जा रही है कृत्रिमता।
बढ़ती कृत्रिमता ने हमसे छीनी
धरती की हरियाली
कोयल की कूक
नदियों की निर्मलता
तितलियों की चंचलता
पक्षियों के कलरव
और अब छीनने पर है वसंत।
विकास के अंधे दौर में दौड़ते लोगो
गाँठ बांध लो यह बात
यदि कृत्रिमता की बलिबेदी पर
चढ़ गया वसंत
तो तुम्हारे जीवन में
सिर्फ पतझड़ ही बचेंगे।