बल्यू आइड आर्मी कहैं / रणवीर सिंह दहिया
बंगाल सेना में अधिकांश सेनिक चाहे वे हिन्दू हों या मुस्लिम अवध में पंजीकृत थे। वही विशालप्रान्त जो उतर प्रदेश कहलाता है और जिसकी राजधानी लखनउ थी । वे लोग आमतौर पर अंग्रेज सैनिक से उंचे थे, कुछ ही थे जिनकी उंचाई पांच फुट आठ इंच से कम रही हो। तीन में से चार सैनिक हिन्दू और इनमें से अधिकांश उच्च वर्गीय ब्राहम्ण या राजपूत थे। किसी कवि की तरह सैनिक का कार्य भी हिन्दूओं द्वारा श्रेश्ठ तथा सम्मनित माना जाता था। अंग्रेजों ने भारत वासियों पर बहुत जुलम ढाये। पहले जमीन पर किसान का पूरा हक था मगर उन्हें जमीन से अलग कर दिया गया। जमीनों पर लगान वसूली बढ़ा दी गई। इतना लगान बढ़ा दिया जो भुगतान सामर्थ्य से बाहर था। औजार गिरवी रखने पर मजबूर किया जाने लगा। खेती करना असम्भव बना दिया। हल नहीं चला जमीन पर, फसल नहीं पर कर देने पर मजबूर किया गया। मंागी जा रही रकम नहीं दी तो यातनाएं दी गई। दिन की तपती दोपहर में पांव से बांधकर उल्टे लटकाया गया। लकड़ी की पैनी छिप्पटें नाखूनों में घुसाई गई। बाप और बेटों को एक साथ बांधकर कोड़े बरसाये गये। औरतों को कोड़े मारे जाते थे। आँखो में लाल मिर्च का चूरा बुरक दिया जाता था। गुनाहो का प्याला लबरेज हो गया। औरतों के स्तनों पर बिछू बांध दिये जाते थे। यह सब जुलमों की खबरे बंगाल आर्मी के फौजियों के पास भी पहंुची। क्या बताया गयाः
बल्यू आइड आर्मी कहैं बगावत उपर आगी फेर॥
दम-दम मैं जो उठी चिन्गारी फैलण मैं ना लागी देर॥
ठारा सौ सतावण साल था जनवरी का म्हिना बताया रै
विद्रोह की जब लाली फूटी फिरंगी घणा ए घबराया रै
मंगल पाण्डे आगे आया रै नींद अंग्रेजां की भागी फेर॥
इसकी लपट मई के मैं मेरठ छावनी मैं पहोंच गई
मेरठ छावनी तै कूच करया दिल्ली आकै दबोच लई
फिरंगी की सोच बदल दई छाती मैं गोली दागी फेर॥
हिंदु मुस्लिम सिपाही सारे थे कठ्ठे लड़े सतावण मैं
पहले भी एकता थी उनकी मिलकै भिडे़ सतावण मैं
डटकै अड़े सतावण मैं या देश भावना जागी फेर॥
किसान और जमींदार दोनों फिरंगी खिलाफ खड़े होगे
दुनिया के साहसी खड़े इसपै ये सवाल बड़े होगे
फिरंगी और कड़े होगे मदद लंदन तै मांगी फेर॥