भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बळता ओरण / राजूराम बिजारणियां

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन बळै
आस पळै
बण फोहा रूई रा
बादळ ढळै

पत्ता हालै
चरचा चालै
आभो साम्हीं
चारूं कानीं
पड़ती छांटां
जमती रेत
हळ बैवता
बणग्या खेत

आस रा पग मोटा
डिग भरै-भरै कोठा

पण आस टूटै
सुख खूटै
सूकै खेत
बळता ओरण.!
बैरण चाली...
जद नागौरण.!!