भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बसंत! / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
खेतां मांय
ओढ्यां पीळौ पोमचौ
सरस्यूं
हरख मनावै
मोरिया नाचै
अर
कोयलड़्यां
गीत गावै
मधरी-मधरी चालै
आ
पुरवाई पून
जद आवै
बसंत
म्हारै गांम
बसंत....
थूं बसज्या नीं
बसंत
थूं बसज्या
म्हारै गांम।