बसंत माला, चन्द्रमणी थारे संग मैं राजदुलारी / मेहर सिंह
वार्ता - इसी उमंग भरे अवसर पर अल्हड़ मस्तियां चारों ओर छितरा जाती हैं। ऐसे उन्मादी मौसम में अंजना की सखियां-सहेलियां बाग में झूलने तथा सैर सपाटे के लिए जाती हैं।
बागां कै म्हां सैल करण नै चलो सहेली सारी
बसंत माला, चन्द्रमणी थारे संग मैं राजदुलारी।टेक
कई कई कदम धरे आगे नै नोलखा बाग खड्या था
रौसे कै म्हां फिरै घूमती एक बरवा नजर पड्या था
बरवे नीचे देखै अंजना एक प्रेम का फूल झड्या था
फूल नै ठा के अंजना बोली जोबन का नाग लड्या था
या हालत होज्या माणस की तुम सुणो सहेली सारी।
कई कई लरजे लागैं उसकै केले केसे गात मैं
मिट्ठी मिट्ठी बाणी बोलैं मजा आवै बात मैं
हवा के म्हां हिलती दीखै पड़ती लरज पात मैं
बागां कै म्हां झूलण चालो घालो हाथ हाथ मैं
शहर नगर तै चलो लिकड़ कै जैसे ले रे हंस उडारी।
पाप पुन्य के तोलण खातिर यो धर्मराज का नरजा
एक बोलै थी एक फूल पै न्यारा न्यारा दरजा
तीन अवस्था हों जिन्दगी मैं कहती आवै प्रजा
धर्म कर्म नै जो जाणैं नहीं किसे बात मैं हरजा
जै तीन अवस्था खत्म बणैं तै ना बचती दुनियादारी।
मातपिता नै जन्म दिया हमनै बेरा पटणा चाहिए
आशा तृष्णा मिटै शरीर की दिल भी डटणा चाहिए
मेहर सिंह कहै अगत की खातिर कुछ हर भी रटणा चाहिए
ब्याह शादी मैं मिलकै नै कुछ रंग भी छटणा चाहिए
भले आदमी सदा करैं भलाई तज कै चोरी जारी।