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बसते बसते ही लोग बसते हैं / प्राण शर्मा
Kavita Kosh से
अच्छे अच्छे चमन उजड़ते हैं।
ऐसे ऐसे ख़िज़ां के धन्धे हैं।
हम भी कितने अजीब बंदे हैं
औरों के झंझटों में पड़ते हैं।
इतनी ख़ामोशी भी नहीं अच्छी
लोग समझें कि आप गूंगे हैं।
ग़म नहीं कर कि ज़िन्दगानी में
बसते बसते ही लोग बसते हैं।
दाद इन्सां को दें कि दुनियाँ के
उलझे उलझे सवाल सुलझे हैं।
ये जो उतरे तो मन से बोझ हटे
"प्राण" एहसान भी तो कर्ज़े हैं।