भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बसन्त ऋतु / बैद्यनाथ पाण्डेय 'कोमल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आइल बसन्त ऋतु आइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
झूम झूम डालन पर खिलले कुसुमवाँ;
पाके पवन बीच हिलले कुसुमवाँ;
हिल हिल कुसुम मुस्काइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
अमवाँ मजरि गइल, पतई छहरल;
सगरो बसन्ती लहरा लहरल;
कन-कन फुदुकि सहलाइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
खिलले गुलाब-कचनार अलबेला;
लागल धरतिया में सौरभ के मेला;
बिहँसल पवन उमसाइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
चूम-चूम फूलन के भँवरा थाकल;
पी-पी सुहाना पराग मद मातल;
जागल तुरत अलसाइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
धनियाँ प रनियाँ जवनियाँ उतरल;
अब त बधरिया के दिनवाँ सुतरल;
अलसी के फूल अलसाइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
बुंटवा-खेंसरिया प अंखिया छिछिले;
अरिया पगरिया में मखमल बिछले;
हर-हर डगर हरियाइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
नील रंग तीसी के फूल थिरकत बा;
झरकत पवनवाँ से डाल सिहरत बा;
रंगवा से रंग शरमाइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
रुखवा-बिरिछिया से कुहुके कोइलिया;
देख राग-रंग सब चिहुँके कोइलिया;
कुहू सुनि मन मधुआइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
गहूंमा प देत बाटे थपकी पवनवाँ;
बनले बधार रूप-रंग के अगनवाँ;
सगरो बा मद छितराइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
रतिया गगनवाँ में चानी चमके;
घास-फूस अरिया-डगरिया बमके;
पनिया में में चन्दवा लुकाइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।
रहि-रहि के रजनी-गंधा महके;
अइसन में सजनी के मनवाँ बहके;
साजन के याद जाग आइल सजनवाँ
आइल बसन्त ऋतु आइल।