भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बसन्त ऐग्ये / संदीप रावत
Kavita Kosh से
रंगीळा- पिंगळा रंगों का संग मा
डांडी-कांठी फूलों- सार्यूं मा
ऐग्ये बहार ऐग्ये,
ओफार वो देखा मौळ्यार छैग्ये |
मुळ-मुळ हे खिल खिलान्दी कांठ्यों मा
झुन्टा खेलन्दी बहार
गैल्याणों का संग जन ,गैल्याणों का साथ
वो भिट्येणा होला जन बरसूं मा बरसों बाद
ओफार वे देखा बहार ऐग्ये |
छाल वल्या, छाल पल्या सार्यूं मा
सार हरी रंगतदार ,
डांड्यूं-डंड्यूळी फूलणी छै चौदिशों मौळ्यार
ब्योली सी सजणी धरती पैरी पिंगळा पैर्वाग
ओफार वो देखा बहार ऐग्ये |
भौंरा-मिरासि खूब खुश हुयांन
स्वागत रितुराजै कनान
रींगणान फूलों-फूलों गीत गौंणान
भ्वीं पसर्यूं बियंत बसंत, बिजी ऐंच अगास
ओफार वो देखा मौळ्यार छैग्ये
ऐग्ये -ऐग्ये बहार ऐग्ये |