भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बसन्त / अजित कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घोंघे पर छा गया बसंत ।

अपने घर को उसने
कँलगी की तरह
माथे पर रखा,
अपने पैरों स
घोड़े की दुलकी वह चला...
फिर क्यों न लोग कहते-
वाह ! वाह !
वाह ! श्री घोंघाबसंत !