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बसन्त / पतझड़ / श्रीउमेश

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आबै छेॅ ऊयाद उतरलोॅ रहै यहाँ जे सुखद बसन्त।
केतना छेलै हूब समैलोॅ मानस में उत्साह अनन्त॥
लाल-लाल पल्लव अधरोॅ सें मुसकावै छेलै सब डाल।
चूमै छेल भौरा सब जे कोमल फूल गुलाबी गाल॥
मह-मह महकी रहल छेलै आमोॅ के डारो में बौर।
पगली मधमाछी नाचै छै उड़ी केॅ चारो और॥
करिया चुनरी ओढी केॅ कोयलीं छेड़ै छै पंचम तान।
लाल-लाल मस्तानो आंखोॅ सें उमगाबै प्रीत उजान॥
लाल-लाल मू खोली केॅ कौआ के बच्चा कुचरै छै।
वगरोइया चू चूँ बालै छै, राजा, कखनू मुकरै छै॥
जहाँ रहै मादक वसन्त, छै आज वहीं पतझड़ मनहूस।
जहाँ रहै रंगीन साज, छै आज वहीं करिया अवनूस॥