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बसन्त / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
पतझर से
उजाड़ा गया मेरा
छोटा -सा बाग
प्रतीक्षा कर रहा है
विश्वास है उसे
संसार के
असंख्य वनों
उपवनों से
गुजरने वाला
बसंत
उसे भी नहीं भूलेगा