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बसुलबा धार-आदमी बसुलबा धार होय गेलै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
आदमी बसुलबा धार होय गेलै।
धरती सें लोक लाज निस्तार होय गेलै।
पशु-पक्षी अच्छा छै,
कमाय छै खाय छै।
माँगै नैं चाँगै छै,
भुखलोॅ टटाय छै।
लूटमार सस्तो व्यापार होय गेलै।
आदमी बसुलबा धार होय गेलै।
धरती सें लोक लाज निस्तार होय गेलै।
मानव छै नाम केॅ,
दानव कहलाय छै।
डाकू केॅ शीशमहल,
सज्जन कलटाय छै।
जहाँ-तहाँ लड़की शिकार होय गेलै।
आदमी बसुलबा धार होय गेलै।
धरती सें लोक लाज निस्तार होय गेलै।
बाघ, सिंह दुर्गा केॅ
सबारी बनी जाय छै।
राक्षस रोॅ लेहू सें
भूख केॅ बुझाय छै।
मतुर आदमी लेॅ, आदमी खूँखार होय गेलै।
आदमी बसुलबा धार होय गेलै।
धरती सें लोक लाज निस्तार होय गेलै।