(राग पीलू-तीन ताल)
बसें तुम्हारे हृदय में श्रीराधा-नँदलाल।
जिस मनमाने रूपमें उर भर नेह बिसाल॥
बसे रहें नित उसी में, करते रहें निहाल।
बढ़ती नित्य रहे परम रुचि उन में सब काल॥
बाहर भी दीखें वही सब दिसि दिव्य रसाल।
स्मृति-मुक्त चुगतो रहै तव मन मधुर मराल॥
मन-तन यों लागे रहैं भूल सकल जंजाल।
परम सुखद होती रहै उन की सार-सँभाल।