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बसेरा हर तरफ़ है तीरगी का / देवमणि पांडेय

बसेरा हर तरफ़ है तीरगी का

कहीं दिखता नहीं चेहरा ख़ुशी का।


अभी तक ये भरम टूटा नहीं है

समंदर साथ देगा तिश्नगी का।


किसी का साथ छूटा तो ये जाना

यहाँ होता नहीं कोई किसी का।


वो किस उम्मीद पर ज़िंदा रहेगा

अगर हर ख़्वाब टूटे आदमी का।


न जाने कब छुड़ा ले हाथ अपना

भरोसा क्या करें हम ज़िंदगी का।


लबों से मुस्कराहट छिन गई है

ये है अंजाम अपनी सादगी का।