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बस्तर मेरा नहीं / अरुण चन्द्र रॉय

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1.
पत्तों का
पत्तों से संवाद
थम गया है
जंगल में
जब से
बूटों का पहरा
पड़ गया है

2.
पत्तों ने
खो दिए हैं
अपने रंग
जब से
फैली है
जंगल में
बारूदी गंध

3.
शाखों पर
ठिठकी कोयल
हो गई है
मौन
जब से
जंगल को
वे रहे हैं
रौंध

4..
कोख में
जो पडा है
सोना
साजिश कर
शांति को
उसी ने छीना

5.
मेरी धरती
मेरा जंगल
फिर भी
नहीं है
मेरा बिस्तर
मेरा 'बस्तर'