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बस्तियों में इक सदा-ए-बे-सदा / अमजद इस्लाम
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बस्तियों में इक सदा-ए-बे-सदा रह जाएगी
बाम ओ दर पे नक़्श तहरीर-ए-हवा रह जाएगी
आँसुओं का रिज़्क होंगी बे-नतीजा चाहतें
ख़ुश्क होंटों पर लरज़ती इक दुआ रह जाएगी
रू-ब-रू मंज़र न हों तो आईने किस काम के
हम नहीं होंगे तो दुनिया गर्द-ए-पा रह जाएगी
ख़्वाब के नश्शे में झुकती जाएगी चश्म-ए-कमर
रात की आँखों में फैली इल्तिजा रह जाएगी
बे-समर पेड़ों को चूमेंगे सबा के सब्ज़ लब
देख लेना ये ख़िज़ाँ बे-दस्त-ओ-पा रह जाएगी