भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस्ती के लोग / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
शाम के धुंधलके में
रात के सन्नाटे में
कुछ लड़कियां इंतजार में हैं
कि कोई आएगा
कोई आता है
रुकता है, हॉर्न बजाता है
संग चली जाती है
लड़कियां
आज घर में
खुशियां चहकी है
बिजली का बिल जमा हुआ
टीपू की फीस
अम्मा का एक्सरे और
चश्मा बन जाएगा
सुस्तायी-सी बंसती
आज देर से उठी है
ऐसी बस्ती हर प्रदेश में है
जो घर को उजाले से
भर रही है
खुद को
अंधेरे में गुमनाम
शहर में
आबाद कर