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बस्ती को छोड़ कर विभूति मल कर / रमेश तन्हा
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बस्ती को छोड़ कर विभूति मल कर
क्यों बैठो सारे कामों से टल कर
क्यों सिर्फ अपनी ज़ात के अंदर सिमटो
औरों के भी सुख दुख में देखो ढल कर।