बस्ती फँसी बखूब नये मसअलों में है,
सर किसके ताज होगा अभी अटकलों में है।
होगा ग़लत न फ़ैसला इतना समझ लें आप,
पुख्ता यक़ीन हमको नई कोंपलों में है।
उम्मीद दाँव पेंच की हमसे न कीजिये,
अपना शुमार गाँव के अच्छे भलों में है।
किरदार बावफा न दिखे दूर-दूर तक,
फितरत दगा, फ़रेब की सारे दलों में है।
रखता नज़र है अपनी मुनाफे पर हर बशर,
घाटे में भी ख़ुशी की सनक पागलों में है।
चाहत है, चख के आप मुझे लिख दें इक सनद,
कोहना शराब कैसी मेरी बोतलों में है।
रखियेगा होशियार मियाँ उनसे गाँव को,
‘विश्वास’ जिनका नाम लिखा दोगलों में है।