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बस्ती है अधूरी / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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इधर
बस्ती है अधूरी
नदी के उस पार राजा के किले हैं

काँच के जादूमहल में
रोज़ होते हैं तमाशे
कभी परियाँ नाचती हैं
कभी बजते ढोल-ताशे

दूर से
दिन देखते हैं
ये सभी परछाईयों के सिलसिले हैं

एक है मीनार सोने की
शहर भर में अँधेरा
कैद सूरज
और है ऐलान
आयेगा सबेरा

लाश
घर में सड़ रही है
पर सडक को लोग महकाते मिले हैं