भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बस्ती है अधूरी / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
इधर
बस्ती है अधूरी
नदी के उस पार राजा के किले हैं
काँच के जादूमहल में
रोज़ होते हैं तमाशे
कभी परियाँ नाचती हैं
कभी बजते ढोल-ताशे
दूर से
दिन देखते हैं
ये सभी परछाईयों के सिलसिले हैं
एक है मीनार सोने की
शहर भर में अँधेरा
कैद सूरज
और है ऐलान
आयेगा सबेरा
लाश
घर में सड़ रही है
पर सडक को लोग महकाते मिले हैं