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बस, केवल एक गीत / तरुण
Kavita Kosh से
ठहरा हूँ, ठहरा हूँ,
मरु-सी इस धरती पर-
गाने को एक गीत,
बस, केवल एक गीत!
अरुणोदय-प्राची के-
स्वस्थ-चपल पंछी के-
प्राणानित से दहके-
कंचन-स्वर में पुनीत!
शशि-चुम्बित मधुर-तरल-
जीवन की मुक्त, सरल
लहरी को सहसा ही
बन्दी कर ले न शीत!
चेतन फुलझड़ियों-सा
लघु-लघु सी कड़ियों का-
गा लूँ मैं गीत तरल-
प्राणों का मंजु मीत!
ज्योति बहाकर मन की-
लाली, लघु जीवन की-
सीपी में ढाल चलूँ
मोती-सी सजल प्रीत!
गाऊँ वह गीत, चहक-
बिखरा सब प्राण-महक;
अंकित हो जिसमें नव-
किरणों की मधुर जीत!
नीलाम्बुधि-सा अनन्त,
टेसू-वन सा ज्वलन्त,
निर्झर-सा प्राणवन्त,
द्युतिमय धन सा अभीत!
द्युतिमय घन सा अभीत!
ठहरा हूँ, ठहरा हूँ,
मरु-सी इस धरती पर-
गाने को एक गीत,
बस, केवल एक गीत!
1960