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बस अपने लिए / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
छोड़ दो
उसे अकेला
झांकेगी अपने भीतर
टटोलेगी अंधेरे कोने
कसेगी मुट्ठी में अपने उजाले
औरों से
क्या मांगना उसको
गर हो सके तो
लौटा दें सब
उसके अस्तित्व के टुकड़े
छोटे - बड़े, न जाने कितने
समेट ले जिनको
अब
बस अपने लिए