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बस एक और / सौरभ
Kavita Kosh से
बस एक आखिरी और
सिगरेट का कश बस एक और
जाम, बस एक और
तीर्थस्थान, एक बार और हो आऊँ
गंगा स्नान, फिर से शुद्ध हो जाऊँ
दुआ, अगर एक और कबूल हो जाए।
और और में बीती जा रही है जिंदगी
औरों की तरह
हर पल, हर क्षण कम होती साँसें
यह अहसास दिलाने लगी हैं
यह और का पागलपन
कभी तो खत्म होगा
निश्चित ही
फिर शायद निश्चय से हो जाए
मेरी मुलाकात।