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बस जमीं ही है नहीं, है आसमां मेरी ग़ज़ल / अमरेन्द्र

बस जमीं ही है नहीं, है आसमां मेरी गजल
जिस तरफ देखोगे तुम होगी अयां मेरी गजल

जिनकी आँखों पर चढ़ा है शीशा काले रंग का
उनको धोखा हो रहा है, है धुआँ मेरी गजल

मैं किसी भी एक की खातिर कभी लिखता नहीं
एक पूरा मुल्क है हिन्दोस्तां मेरी गजल

जो कि अपने मतलबों के वास्ते जीते यहाँ
ऐसे लोगों के लिए है गालियाँ मेरी गजल

जो तुम्हारे जुल्म पर कुछ आज तक न कह सके
है उन्हीं मजलूम लोगों की जुबां मेरी गजल

आदमी ठिगना लगे और कुर्सियाँ ऊँची हुईं
ले के मुझको आ गई है ये कहां मेरी गजल

आज यह बोले न बोले तुमसे या अमरेन्द्र से
एक दिन बोलेगी मेरी दास्तां मेरी गजल।