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बस तुम / मदन कश्यप

धीरे-धीरे फीकी पड़ जाएगी
स्वर्ण पदकों की चमक
धुन्धले हो जाएँगे विजेताओं के नाम
लेकिन तुम्हारा दुख और संघर्ष
हमेशा चमकता रहेगा
अहंकारियों और दमनकारियों के
कालिख पुते चेहरों से बने कैनवस पर
 
आँकड़ों की किताबों में
सिमटकर रह जाएँगे सारे विजेता
बस, एक तुम रह जाओगी
हमारी बेचैन स्मृति में
एक उष्ण तारे की तरह दमकती !