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बस तेरे बीमार हैं हम / अर्चना अर्चन
Kavita Kosh से
मत समझ लाचार हैं हम
बस तेरे बीमार हैं हम
तू ज़रूरी है यकीनन
पर ज़रा खुद्दार हैं हम
सच कहा तो कत्ल तय है
हां, मगर तैयार हैं हम
अहमियत इतनी सी अपनी
आज का अखबार हैं हम
उलझनें हैं मकड़ियों सी
खंडहर दीवार हैं हम
मर्जियां उसकी चलेंगी
कहता है सरकार हैं हम
नफरतें हैं आग, ‘अर्चन’
इश्क की बौछार हैं हम