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बस नज़र का तेरी अंदाज़ बदल जाता है / गुलाब खंडेलवाल

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बस नज़र का तेरी अंदाज़ बदल जाता है
सुर तो रहते हैं वही, साज़ बदल जाता है

कुछ तो कहता है कोई आँखों ही आँखों में, मगर
बात-ही-बात में वह राज़ बदल जाता है

कौन होता है बुरे वक़्त में साथी किसका!
आइना भी ये दग़ाबाज़ बदल जाता है

लीजिए ज़ब्त किया हमने, मगर मुँह का रंग
क्या करें, सुन के जो आवाज़ बदल जाता है!

आज तुझसे वे निगाहें भी मिल रहीं हों, गुलाब!
उनके मिलने का तो अंदाज़ बदल जाता है