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बस प्यार / संजीव 'शशि'
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मिलें शूल या सुमन सुगंधित,
मुझको प्रिय स्वीकार।
किया है मैंने तो बस प्यार॥
नहीं दे सकूँगा मैं तुमको,
सोना-चाँदी, महल-दोमहले।
नहीं कर सकूँगा मैं पूरे,
नयनों के यह स्वप्न रुपहले।
भावों की जयमाला लेकर,
आया तेरे द्वार।
तुमको सुख देकर सुख पाऊँ,
जो तुमको वह मुझको भाया।
तुम बिन पूर्ण कहाँ मैं प्रियतम,
मैं तो केवल तेरी छाया।
सर्व समर्पण किया प्रेम में,
कब चाहे अधिकार।
जबसे लगन लगी है तुम सँग,
हुआ प्रेममय मेरा जीवन।
बँधा प्रेम डोरी में झूमूँ,
कितना सुखमय है यह बंधन।
जी लूँ प्रीत भरे पल जी भर,
जीवन के दिन चार।