भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बस में होता तो हर इन्सां / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
बस में होता तो हर इन्सां
होता सबसे सुन्दर इन्सां
सब कुछ घर में ही मिल जाता
तो क्या करता बाहर इन्सां
दौर-ए-हाज़िर में मिलता है
मतलब में ही हँसकर इन्सां
गिरने से वो घबराता तो
चलता ही क्यों उड़कर इन्सां
जाने कब से ढूँढ़ रहा है
झूठ-ओ-सच का अन्तर इन्सां
ख़ुद यह कहना ठीक नहीं है
हम हैं तुमसे बेहतर इन्सां
सब करने में अक्सर खोता
कुछ करने का अवसर इन्सां
दिल से कोशिश करे अगर तो
जी सकता है मरकर इन्सां