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बस स्टाप पर द्रौपदी / अशोक लव
Kavita Kosh से
बस - स्टॉप पर खड़ी थी
अधेड़ औरत।
एक के बाद एक बसें आतीं भीड़ भरीं
वह चढ़ नहीं पाती
बस के दरवाज़े से उलटे पाँव लौट आती
कंधे से लटकता झोला संभालती।
' इस बार आई बस में वह ज़रूर चढ़ेगी '
उसने निर्णय कर लिया ,
दरवाज़े तक लटकी भीड़ में डाल दिया उसने हाथ
हैंडल हाथ में नहीं आया
ड्राईवर ने चला दी बस
गिर गई औरत
छिल गई कुहनियाँ
झोले से दूर जा गिरा
टिफ़िन-बॉक्स ।
झटका लगते ही खुल गया
टिफ़िन-बॉक्स
सड़क पर जा गिरीं -
दो सूखी चपातियाँ
एक फांक अचार ,
झट से उठा लीं चपातियाँ
झट से उठा लिया अचार
पोंछकर करने लगी बंद उन्हें
टिफ़िन-बॉक्स में ।
भरे बस-स्टॉप पर
अधेड़ औरत
द्रौपदी बनी खड़ी थी ।