भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहणो सुणो लगा के कान / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बहणो सुणो लगा के कान
के यहां की नारी कैसी थी
हरीचन्द चाले सरबस देके
बिकै कांसी मैं कुटम नै लेकै
बिकै कांसी में साथ सन्तान
वा तारा किसी बिचारी थी
बहणो सुणो...
अपणे स्वामी की समझांदी
बेद्यां के परमाण बतांदी
लंका नगरी के दरम्यान
रावण की प्यारी कैसी थी
बहणो सुणो...
चोदां साल सह्या दुखड़ा
छोड्या राज महल का सुखड़ा
जिसके पति राम भगवान
वा जनक दुलारी कैसी थी
बहणो सुणो...
अंधे थे रेाजा धिरतरासटर
पट्टी बांधी थी अपणी आंख पर
खुद बी बण गई पति समान
वा गन्धारी कैसी थी
बहणो सुणो...