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बहते हुए जा रहे बेटे से / विवश पोखरेल / सुमन पोखरेल

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पत्थर बनाकर एक माँ के हृदय को
पानी में बहा दिया है मैंने
मेरी खुशी / मेरा प्राण / मेरा सपना!
जाना, बहते हुए जाना
जहां मिलेगी मिट्टी, वहीं रुक जाना
और समाधिस्थ हो जाना ।।

जीवन भर मिट्टी से ही खेलकर भी
मिट्टी में ही पलकर भी
हम अपना कह सकें जिसे
वैसी मिट्टी थी ही कहां जो तुम्हें दफना पाऊं?
तुम जहां बिना कपड़ों के खेला करते थे
वो आंगन सरकार की जमीन था,
तुम्हारे पिता बरखा में जोत कर
अगहन में धान का एक-एक दाना बटोरते थे जिस खेत में
वो खेत मालिक का था,
हमारे पास तो मिट्टी बस उतनी ही थी
जो श्रम के पसीने के साथ
हमारे बदन पे लग कर आती थी।

आज बाढ़ बन कर आयी हुई आंसुओं के सैलाब में
उस मिट्टी को भी धो-धो कर
अपने हृदय को काटकर कर रही हूँ विदा तुम्हें।
जाना, खुशी से जाना
मिट्टी जहां मिलेगी, वहीं रुक जाना
और समाधिस्थ हो जाना।

अनियन्त्रित लहरें हो के आ रही हैं
तेरे पैदा होने से पहले और बाद की स्मृतियाँ
तुम जिस दिन पैदा हुए थे, उस दिन नेपाल बंद था
अस्पताल बंद था
और हड़ताल पे थे सारे डॉक्टर।
सप्ताह भर से काम न मिलने पर
जच्चा-बच्चा की देखभाल कर न पाने की पीड़ा में
मुँह लटकाये हुए तुम्हारा बाप
घर के पास वाले खेत की मेड पर बैठकर
रो रहा था,
और भगवान माने गये पत्थर से
तेरे सुखद आगमन और मेरा सुस्वास्थ्य के लिए
प्रार्थना कर रहा था
धूप और पानी दोनों से ही जलाने और भिगोने वाले
घर नाम की एक छोटी-सी झोपड़ी में तुम पैदा हुए थे।
वहीं मालिक के घर का
बचा हुआ जूठा और बासी चावल खाकर
गुज़र निकली थी मैं प्रसूति अवस्था से।
तुम जिस दिन जन्मे थे, उस दिन
कमरे के उस ठंडे कोने में
मुट्ठी भर पटसन की डंठल और धान के छवाली जलाकर
गर्म किया था मैंने अपने ठंडे पड़े शरीर को
तेल के बदले गर्म पानी से मालिश किया था मैंने खुद को।।

तुम्हें जीवन की गहरी नदी में
छलांग लगाना सिखाते-सिखाते
तैरना सिखाते-सिखाते
खुद के इन्द्रधनुषी सपने को बहाकर स्तब्ध हूँ मैं
खुशियों को डुबोकर स्तब्ध हूँ।
इस देश में तुम दुःख पाने के लिए ही तो आये थे।
और तुम दुःख पाकर ही जा रहे हो।
जाना ... तुम ने पानी में खेली हुई कागज़ की नाव की तरह
कहीं भी डूबे बिना बहते-बहते जाना
अदृश्य बहने वाली हवा और समय की तरह
सुस्त-सुस्त बहते हुए जाना।

तुम्हें लपेटकर बहाने के लिए मेरे पास
पहनी हुई इस अधफटी साड़ी के अलावा कुछ भी नहीं था
जिस साड़ी का रंग
किसी भी राजनैतिक पार्टी के झंडे से मेल नहीं खाता
हमारे पसीने, आँसू और जीवन से मेल नहीं खाता
तथाकथित समानता, आरक्षण और स्वतंत्रता से मेल नहीं खाता।
उसी साड़ी को फाड़कर
तुम्हारे ऊपर की अगाध ममता को निकालकर हृदय से
इस मटमैले पानी में बहा रही हूँ।
मेरी खुशी/ मेरा प्राण / मेरा सपना!
जाना, बहते हुए जाना
जहां मिलेगी मिट्टी, वहीं रुक जाना
और समाधिस्थ हो जाना।
०००